👉 1991 में सोवियत संघ (USSR) का बिखराव दुनिया का सबसे बड़ा बंटवारा था। एक ही रात में USSR टूटकर 15 स्वतंत्र देशों में बदल गया। जानिए सोवियत संघ के इतिहास, कारण, गोर्बाचेव की नीतियां, शीत युद्ध, और 25 दिसंबर 1991 की वो रात जब दुनिया का नक्शा हमेशा के लिए बदल गया।
सोवियत संघ का इतिहास | एक महाशक्ति का जन्म, जो सबको पीछे छोड़ गई
1922… रूस की ठंडी बर्फीली सर्दियों में, एक नए राजनीतिक प्रयोग ने जन्म लिया — सोवियत संघ (Union of Soviet Socialist Republics – USSR)। यह कोई साधारण देश नहीं था। यह 15 गणराज्यों का संघ था, जिसमें रूस, यूक्रेन, बेलारूस, कज़ाख़स्तान, उज़्बेकिस्तान, जॉर्जिया, अज़रबैजान, लातविया, लिथुआनिया, एस्टोनिया, मोल्दोवा, तुर्कमेनिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और आर्मेनिया शामिल थे।
सोवियत संघ का विचार एक क्रांति से निकला था — 1917 की रूसी क्रांति, जिसने जार की शाही सत्ता को खत्म किया और एक नए साम्यवादी (Communist) शासन को स्थापित किया। सोवियत संघ का इतिहास
दुनिया उस समय पहली बार देख रही थी कि एक देश सिर्फ अपनी सेना या अर्थव्यवस्था से नहीं, बल्कि विचारधारा से भी दुनिया को हिला सकता है। सोवियत संघ का सपना था — पूरी दुनिया में समाजवाद का परचम लहराना।
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दुनिया से मुकाबले की भूख
सोवियत संघ का इतिहास
USSR की ताकत का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि दूसरे विश्व युद्ध में नाज़ी जर्मनी को हराने में इसका सबसे बड़ा योगदान था। स्टालिनग्राद की लड़ाई (1942-43) ने हिटलर की कमर तोड़ दी। युद्ध के बाद, सोवियत संघ सिर्फ यूरोप का ही नहीं, बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा भूभाग रखने वाला देश था।
उसकी सीमाएं आधी दुनिया में फैली थीं, और उसके पास प्राकृतिक संसाधनों का अंबार था।
लेकिन ताकत के साथ-साथ एक डर भी था — अमेरिका का उदय।
दूसरे विश्व युद्ध के बाद शुरू हुआ शीत युद्ध (Cold War), जो असल में हथियारों, अंतरिक्ष, जासूसी और विचारधारा की लड़ाई थी। एक तरफ पूंजीवाद (Capitalism) वाला अमेरिका और उसके NATO सहयोगी, दूसरी तरफ समाजवाद (Socialism) वाला USSR और उसका वारसा पैक्ट (Warsaw Pact)।
लौह परदे के पीछे का जीव
सोवियत संघ का इतिहास
सोवियत संघ के बाहर के लोग इसे एक रहस्यमयी देश मानते थे।
सख्त सेंसरशिप, सरकारी कंट्रोल, गुप्त पुलिस (KGB) और सीमित व्यक्तिगत आज़ादी — ये सब पश्चिमी देशों के लिए भय और आकर्षण का मिश्रण था। लेकिन संघ के अंदर, लोगों को मुफ्त शिक्षा, मुफ्त स्वास्थ्य सेवा, रोजगार की गारंटी और एक मजबूत सामाजिक सुरक्षा मिली हुई थी।
फिर भी, चमक के पीछे दरारें थीं।
केंद्रीय योजना आधारित अर्थव्यवस्था (Planned Economy) ने शुरुआत में तेज़ी दिखाई, लेकिन समय के साथ लचीलेपन की कमी और भ्रष्टाचार ने इसे जकड़ लिया।
गोर्बाचेव का युग — सुधार या आत्महत्या?
सोवियत संघ का इतिहास
1985 में, मिखाइल गोर्बाचेव सोवियत संघ के नेता बने। वह युवा थे, नए विचारों के साथ आए थे और मानते थे कि संघ को बचाने के लिए बड़े बदलाव जरूरी हैं। उन्होंने दो ऐतिहासिक नीतियां शुरू कीं:
- ग्लास्नोस्त (Glasnost) — मतलब “खुलापन”। प्रेस को आज़ादी, जनता को सरकार की आलोचना करने का अधिकार।
- पेरेस्त्रोइका (Perestroika) — मतलब “पुनर्गठन”। आर्थिक सुधार, प्राइवेट बिजनेस को थोड़ी आज़ादी, और पश्चिमी देशों के साथ व्यापार बढ़ाना।
शुरुआत में लगा कि ये सुधार देश को नई जान देंगे। लेकिन हुआ उल्टा — लोगों ने पहली बार सरकार की नाकामी को खुलकर देखना शुरू किया। अलग-अलग गणराज्यों में राष्ट्रवाद जागने लगा।
बाल्टिक से उठी आज़ादी की लहर
सोवियत संघ का इतिहास
1990 में, लिथुआनिया ने सोवियत संघ से अलग होने का ऐलान कर दिया।
फिर लातविया और एस्टोनिया भी पीछे नहीं रहे।
बाकी गणराज्य देख रहे थे कि ये “असंभव” भी मुमकिन है।
मॉस्को ने सेना भेजी, लेकिन गोलियों के सामने भीड़ खड़ी रही।
ये अब सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि भावनात्मक लड़ाई बन चुकी थी।
मॉस्को कू और अंतिम झटका
अगस्त 1991 में, सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी के कट्टर नेताओं ने गोर्बाचेव के खिलाफ तख्तापलट की कोशिश की।
उन्हें डर था कि गोर्बाचेव की नीतियां संघ को तोड़ देंगी।
लेकिन तख्तापलट असफल हो गया — और यही असफलता सबसे बड़ा झटका बनी।
जनता और अलगाववादी नेता अब खुलकर बोलने लगे: “हमें सोवियत संघ नहीं चाहिए।”
25 दिसंबर 1991 — एक युग का अंत
सोवियत संघ का इतिहास
क्रिसमस की रात, क्रेमलिन के ऊपर से लाल सोवियत झंडा उतार दिया गया।
उसकी जगह रूस का तिरंगा फहराया गया।
उस पल, 15 गणराज्य स्वतंत्र देश बन गए।
इतिहास का सबसे बड़ा एकमुश्त बंटवारा — भारत-पाक विभाजन भी इसके सामने छोटा लगने लगा।

बिखरने के बाद की दुनिया
सोवियत संघ का इतिहास
USSR के टूटने के बाद,
- रूस ने सोवियत संघ की परमाणु संपत्ति और सुरक्षा परिषद की सीट अपने पास रखी।
- यूक्रेन, बेलारूस और कज़ाख़स्तान ने परमाणु हथियार छोड़ दिए।
- बाल्टिक देश यूरोपीय संघ और NATO में शामिल हो गए।
- मध्य एशियाई देश अपने-अपने संसाधनों के दम पर खड़े होने लगे।
लेकिन साथ ही, नई समस्याएं आईं — आर्थिक मंदी, बेरोजगारी, राजनीतिक अस्थिरता, और जातीय संघर्ष।
आज का असर और भविष्य का सवाल
सोवियत संघ का इतिहास
आज भी रूस और पश्चिम के बीच तनाव की जड़ में सोवियत संघ का बिखराव है।
यूक्रेन युद्ध, NATO का विस्तार, और रूस की पुरानी महाशक्ति वाली महत्वाकांक्षा — ये सब 1991 के उसी क्रिसमस से जुड़े हैं।
क्या USSR कभी फिर से बनेगा?
शायद नहीं।
लेकिन राजनीति में “कभी नहीं” कहना सबसे बड़ा जोखिम है।
सोवियत संघ का इतिहास
FAQ: सोवियत संघ (USSR) का बिखराव
▸ सोवियत संघ (USSR) क्यों टूटा?
▸ USSR के टूटने से कौन-कौन से 15 देश बने?
▸ आधिकारिक रूप से USSR कब समाप्त हुआ?
▸ अगस्त 1991 का मॉस्को कू क्या था?
▸ ग्लास्नोस्त और पेरेस्त्रोइका में फर्क?
पेरेस्त्रोइका = आर्थिक पुनर्गठन—केंद्रीय नियोजन से हटकर कुछ बाज़ार-आधारित सुधार, निजी/सहकारी उद्यमों को सीमित अनुमति, विदेशी निवेश/व्यापार पर जोर।
▸ क्या यह भारत-पाक विभाजन से बड़ा था?
▸ परमाणु हथियारों का क्या हुआ?
▸ बाल्टिक देश (लातविया, लिथुआनिया, एस्टोनिया) सबसे पहले क्यों अलग हुए?
▸ क्या USSR फिर से बन सकता है?
▸ भारत पर क्या असर पड़ा?
▸ USSR बना कैसे था?
▸ USSR टूटने की संक्षिप्त टाइमलाइन?
सोवियत संघ का इतिहास
1991 में सोवियत संघ का पतन आधुनिक इतिहास की सबसे बड़ी घटनाओं में से एक था। विस्तार से जानकारी के लिए आप विकिपीडिया, History.com और BBC की रिपोर्ट देख सकते हैं।